कहाँ से आई हूँ मैं,
किसने मुझे बनाया है।
मन में हलचल उठती है,
किसने मुझे जगाया है।
अलौकिक स्रोत ने आकर
तब मुझे ये समझाया है।
सब होते उत्पन्न यहीं से,
अंत यहीं पर पाया है।
जीव-अजीव के स्वामी एक,
अवचेतन में जगाया है।
तू भी कृति अनुपम उसकी,
प्रेम से तुझे बनाया है।
जो वह है, वह तू भी है,
फर्क बून्द-सागर सा है।
सब अस्तित्व रखते उससे
पर वह सब में समाया है।
ब्रह्मांड का नियंता है वह,
कण-कण को सजाया है।
है अनन्त ऊर्जा प्रवाहित,
जग जिससे नहाया है।
होनी-अनहोनी सब का तो,
सॉफ्टवेयर अपडेट कराया है।
जो करोगे अपलोड वही फिर,
लौट तुझे मिल पाया है।
कर्म-सुकर्म बना भेजा है,
जिसको जो भी भाया है,
खुशी-खुशी कमाता जग में,
वही लौट कर आया है।
वही लौट कर आया है।